Wednesday, April 16, 2008

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना ।

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना ।
जो रुखा सूखा दिया हमें,कभी इसका भोग लगा जाना ।।

ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी तेरी सितारों जड़ी ।
ना बर्फी न पेड़ा माँ,श्रद्वा के नयन विछाये खड़ा ।
इस अर्जी को न ठुकराना ।।कभी...................

जिस घर के दीये में तेल नहीं,तेरी ज्योति जगाऊँ माँ कैसे ।
जहाँ मैं बैठूँ वहाँ बैठ कर हे माँ, बच्चों का दिल बहला जाना ।।
कभी.......................

तू भाग्य बनाने वाली है, मैं हूँ तकदीर का मारा माँ ।
हे दाती संभालो भिखारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ।
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ,मेरे दोषों को भुला जाना ।।
कभी........................

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